अजय भट्टाचार्य
यह शीर्षक उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन दिन पहले उद्घाटित अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के लिए जान बुझकर बनाया गया है जहाँ पहली इंटरनेशनल फ्लाइट लैंड भी कर चुकी है। चूँकि उत्तर प्रदेश में चुनाव दहलीज पर हैं इसलिये वोट बैंक का जुगाड़ हर राजनीतिक दल की प्राथमिकता है। प्रधानमंत्री ने उसी वोट बैंक के लिए कुशीनगर अंतर राष्ट्रीय हवाई अड्डे के उद्घाटन को चुना और लंका से बौद्ध धर्मगुरुओं को इस अवसर पर बुला भी लिया गया। वाल्मीकि जयंती के दिन बौद्धों सहित अन्य दलित समुदाय को रिझाने का इससे बेहतर अवसर और क्या हो सकता था। मगर फच्चर यह है कि जिस हवाईअड्डे को प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी अपनी उपलब्धि बताकर प्रचार प्रसार कर रही है, सपा मुखिया अखिलेश यादव ने इसे सपा सरकार का काम बताते हुए मोदी सरकार पर व्यंग्य किया है।
उन्होंने ट्वीट किया, कि जबकि शिलान्यास की एक ईंट तक भी इन्होंने न लगाई.., तब भी सपा के कामों का उद्घाटन करने आ गए भाजपाई… लेकर अपनी कैंची, फ़ीता, माला, मिठाई, भाजपाई ये याद रखें कि ‘पायलट बनने से प्लेन आपका नहीं हो जाता’ और ये भी कि जिस रनवे से आप उड़ान भर रहे हैं उसकी ज़मीन ‘किसी और’ ने तैयार की थी।
बता दें कि कुशीनगर एयरपोर्ट को पर्यटन को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। कुशीनगर का क्षेत्र बौद्ध सर्किट के तहत आता है। बौद्ध सर्किट में नेपाल के लुंबिनी जहां गौतम बुद्ध का जन्म हुआ से लेकर बिहार के बोध गया तक का क्षेत्र शामिल है, जहां उन्हें बुद्धत्व प्राप्त हुआ। इसमें सारनाथ और कुशीनगर भी शामिल है जहां क्रमश बुद्ध ने पहला उपदेश दिया और महापरिनिर्वाण प्राप्त किया। कुशीनगर बौद्ध धार्मिक यात्रा के चार महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है। यह हवाई अड्डा बुद्धिस्ट सर्किट में कुशीनगर को महत्व दिलाएगा।
राजनीति के इतर जो सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात है वह यह कि कुशीनगर हवाई अड्डे को भी अगले साल तक निजी क्षेत्र को सौंपे जाने की योजना है। सरकार ने इस हवाई अड्डे को भी अगले साल राष्ट्रीय मोनेटाइजेशन कार्यक्रम में निजी पूंजीपतियों को सौंपे जाने की सूची में रखा है। देश के छह बड़े एयरपोर्ट 50 सालों के लिए पहले ही अडानी ग्रुप को सौपे जा चुके हैं, ओर 25 अन्य हवाईअड्डों को भी बेचने की योजना है। इसमे फिलहाल कोई संशय नहीं है कि यह सब हवाई अड्डे अडानी ग्रुप को ही मिलेंगे। बस प्रक्रिया और अन्य औपचारिकताओं की देर है।
बिजनेस स्टैंडर्ड की एक खबर के अनुसार, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया, एएआई बोर्ड ने देश के छह प्रमुख हवाई अड्डों, भुवनेश्वर, वाराणसी, अमृतसर, त्रिची, इंदौर, रायपुर और सात छोटे हवाई अड्डों, झारसुगुडा, गया, कुशीनगर, कांगड़ा, तिरुपति, जबलपुर और जलगांव हवाई अड्डों के निजीकरण को मंजूरी दे दी है। इन छोटे हवाई अड्डों को, बड़े हवाई अड्डो के साथ जोड़ कर, एक खरीदो, एक पाओ, योजना की नकल पर, बड़े हवाई अड्डों के साथ जोड़ कर मोनेटाइज किया जाएगा। ऐसा, निवेशकों को बड़े पैमाने और आकार के साथ लुभाने के लिए किया जाएगा।
एएआई, नीलामी के लिये, बोली हेतु, दस्तावेज तैयार करने के लिए एक सलाहकार की नियुक्त करेगा, जो इन हवाई अड्डों की रियायत अवधि और आरक्षित मूल्य तय करेगा।
नीलामी हेतु, बोलियां 2022 की शुरुआत तक बुलाए जाने की संभावना है। यह भी पहली बार ही है, जब बड़े हवाई अड्डों को छोटे हवाई अड्डों से जोड़ कर, एक नए मॉडल के अनुसार, यह हवाई अड्डे निजी क्षेत्रों को सौंपे जाएंगे। सरकार का उद्देश्य है, सभी हवाई अड्डों को निजी क्षेत्रों को सौंप देना है। पर छोटे शहरों के हवाई अड्डे, कम और सीमित उड़ान के कारण, उतने लाभकारी नहीं होते हैं और, उन्हें अपने नियंत्रण में लेने के लिये, पूंजीपति उतने उत्साह से आगे नहीं आते हैं, तो इसे भो मार्केटिंग के सूत्र, एक खरीदो के साथ एक मुफ्त पाओ के अनुसार, बड़े हवाई अड्डों के साथ जोड़ने की योजना नीति आयोग ने बनाई है।
नीति आयोग द्वारा तैयार किये गए, राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन दस्तावेज के अनुसार, “निजी क्षेत्र के निवेश और भागीदारी की मदद से लाभकारी हवाई अड्डों के साथ-साथ गैर-लाभकारी हवाई अड्डों के विकास को सुनिश्चित करने के लिए, छह बड़े हवाई अड्डों में से प्रत्येक के साथ छोटे हवाई अड्डों की जोड़ी / क्लबिंग और पैकेज के रूप में पट्टे पर देने का पता लगाया जा रहा है,” इसी दस्तावेज में दिए गए दिशानिर्देशों के अनुसार, सरकार, इन हवाई अड्डों को मोनेटाइज कर के धन एकत्र करेगी। एएआई के अनुसार, झारसुगुडा हवाईअड्डे को भुवनेश्वर, कुशीनगर और गया हवाईअड्डों के साथ जोड़ा जाएगा, जबकि वाराणसी, कांगड़ा, अमृतसर, जलगांव और त्रिची हवाईअड्डों को क्रमश: रायपुर जबलपुर, इंदौर और तिरुपति हवाईअड्डों के साथ जोड़ा जाएगा।
संभावित निवेशक और सलाहकार जिनसे बिजनेस स्टैंडर्ड ने बात की थी, ने कहा है कि, “बड़े निवेशकों के ज्यादा दिलचस्पी दिखाने की संभावना नहीं है क्योंकि ये सीमित आकार और पैमाने वाले छोटे हवाई अड्डे हैं।” हालांकि, उन्होंने बताया कि “गया और कुशीनगर के हवाई अड्डों के साथ, वाराणसी का हवाई अड्डा, निवेशकों और पूंजीपतियों को आकर्षित करेगा, क्योंकि तीनों हवाई अड्डे बौद्ध सर्किट पर आते हैं और इन पर, अंतरराष्ट्रीय यात्रियों को आकर्षित करने की क्षमता भी है।” आर्थिक मामलों पर लगातार शोधपरक और तथ्यात्मक लेख लिखने वाले, गिरीश मालवीय के एक लेख के अनुसार, “इन सारे एयरपोर्ट को अडानी के हवाले करने से पहले सरकार इनका ढांचा दुरुस्त करने के नाम पर 14,500 करोड़ रुपये खर्च कर रही है। देश भर में लगभग 100 से अधिक एयरपोर्ट है इन पर कुल 25 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई गई थी लेकिन मोदी सरकार इसमें से आधी से ज्यादा रकम उन्हीं हवाईअड्डों पर खर्च करती रही है जिन्हें या तो अडानी को सौंपे जा चुका हैं या भविष्य में उसे ही देने की तैयारी है।” “गुवाहाटी हवाईअड्डे पर 1,000 करोड़ रुपये की लागत से एयरपोर्ट टर्मिनल की नई इमारत का निर्माण किया गया है, इंदौर में तो पूरी तरह से नया एयरपोर्ट निर्माण किया गया है तिरुवनंतपुरम एवं गुवाहाटी की हवाईपट्टियों के विस्तार में 100 करोड़ रुपये लगाए गए हैं, इस प्रकार 2017 से 2020 के दौरान 2,500 करोड़ रुपये से अधिक राशि खर्च की गयी है।” यानी इन हवाई अड्डो को जनता के टैक्स से सजा संवार कर, बस अडानी ग्रुप को सौंप देने की योजना है, जैसे कि सरकार एक प्रकार से व्यापारिक दलाल की भूमिका में है।
(लेखक देश के जाने – माने पत्रकार हैं। दोपहर का सामना अखबार के नियमित स्तंभ लेखक भी हैं।)
