अजय भट्टाचार्य
मणिपुर में सत्ता की दावेदार दोनों बड़ी पार्टियों कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी चुनाव नतीजे आने के बाद अपने-अपने उम्मीदवारों को थामने की कवायद में जुटी हैं। भाजपा ने आगामी मणिपुर विधानसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाये जा सकने वाले पार्टी के कई सदस्यों के साथ एक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। पार्टी ने चुनाव से पहले उनके पाला बदलने को रोकने की कोशिश के तहत यह कदम उठाया है। पार्टी के इन सदस्यों में वे लोग शामिल हैं, जिन्हें इंफाल पश्चिम जिले की केसामथोंग सीट और काकचिंग जिले की सुगनु सीट से उम्मीदवार बनाया जा सकता है। भाजपा के मुख्य प्रवक्ता सी विजय के अनुसार पार्टी ने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की उपस्थिति में कई संभावित उम्मीदवारों के साथ सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं ताकि वे (संभावित उम्मीदवार) बदलते राजनीतिक परिदृश्य में अपना पाला नहीं बदल सकें। भारतीय जनता पार्टी चुनाव में उम्मीदवार बनाये जा सकने वाले पार्टी के सदस्यों के बीच सहयोग सुनिश्चित करने के लिए बैठकें आयोजित कर रही है। पार्टी की ओर से मणिपुर विधानसभा चुनावों के लिए अपने उम्मीदवारों की सूची की घोषणा करना अभी बाकी है। पार्टी की कोशिश है कि मणिपुर में भाजपा के बीच एकता बना कर रखी जाए। ऐसे में भाजपा की ओर से यह कदम उठाए गए हैं।
इधर गोवा की तरह ही कांग्रेस मणिपुर में भी उम्मीदवारों को पार्टी के प्रति निष्ठा रखने की सौगंध दिलाने पर विचार कर रही है। पिछले पांच सालों में यहां 42 फीसदी विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। पहला स्विचओवर 2017 में चुनाव नतीजे के अगले दिन हुआ था। इसके चलते भाजपा के पांच पार्टी वाले गठबंधन को सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़ा मिल गया था। कांग्रेस अब इसे फिर से दोहराना नहीं चाहती है। कांग्रेस ने अब मणिपुर में अपने उम्मीदवारों को निष्ठा की शपथ दिलाने का प्रस्ताव दिया है। कुछ ऐसा ही पिछले शनिवार को गोवा में देखने को मिला था। पिछले पार्टी ने अपने उम्मीदवारों को गोवा में मंदिर, मस्जिद और चर्च में ले जाकर शपथ दिलाई कि चुनाव जीतने के बाद वे पार्टी का साथ नहीं छोड़ेंगे। गोवा में 2017 से अब तक 17 में से 15 विधायक कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं। कांग्रेस इस अतीत को दोहराना नहीं चाहती है, इसलिए शनिवार को वह अपने 36 उम्मीदवारों को महालक्ष्मी मंदिर, बम्बोलिम क्रॉस और बेटिन मस्जिद में ले गई थी। मणिपुर में कांग्रेस के पर्यवेक्षक और स्क्रीनिंग कमिटी के सदस्य प्रद्युत बोरदोलोई कहते हैं कि हम टिकट देने के बाद एक प्रकार से निष्ठा की शपथ दिलाने पर विचार कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि हम उन पर भरोसा नहीं करते। ऐसा नहीं है कि आत्मविश्वास की कमी है। हम अच्छी तरह से जानते हैं कि पार्टी की ओर से उतारे गए ये लोग पूरी तरह से कांग्रेसी हैं। वे दर्द, पीड़ा और खुशी हर तरह की स्थिति में कांग्रेसी बने रहेंगे लेकिन हमें एक निष्ठा की शपथ चाहिए। पांच साल पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। 60 सीटों वाले विधानसभा में पार्टी को 28 सीटें मिली थीं। हालांकि दलबदल और चुनाव के बाद गठबंधन के चलते कांग्रेस यहां लगातार चौथी बार सरकार बनाने से चूक गई थी।
प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के बीच अभी तक मुख्य मुकाबला देखने को मिल रहा है। मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा के लिए दो चरणों में, 27 फरवरी और तीन मार्च को चुनाव होना है, जबकि मतगणना 10 मार्च को होगी। प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला देखने को मिल रहा है।
(लेखक देश के जानेमाने पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)
