अजय भट्टाचार्य
उत्तर प्रदेश में मुसलमानों को भरमाने के लिए भारतीय जनता पार्टी जिस मुस्लिम जिन्न को बड़ा बनाना चाहती थी, जिन्ना की एंट्री ने उस जिन्न को फिर बोतल में बंद कर दिया है। उत्तर प्रदेश में करीब 19 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं और 9 फीसदी से ज्यादा यादव वोटर हैं। इनके अलावा सूबे की 403 सीटों वाली विधान सभा में 143 सीटों पर मुस्लिम अपना असर रखते हैं जिनमें 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी 20 से 30 फीसदी के बीच है, जबकि 73 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान 30 फीसदी से ज्यादा हैं। अखिलेश गैर यादव हिन्दू वोटरों के ध्रुवीकरण की काट में मुस्लिम वोटरों का ध्रुवीकरण चाहते हैं ताकि एकमुश्त 19 फीसदी वोट सपा को मिल सके। सपा के अलावा बसपा, कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी ताल ठोक रही है। 2017 के चुनावों में ओवैसी ने 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे लेकिन 37 पर उनकी जमानत जब्त हो गई थी। तब ओवैसी को करीब 2.5 फीसदी वोट मिले थे। इस बार ओवैसी 100 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने का एलान कर चुके हैं।

योगी आदित्यनाथ ने भी रणनीतिक तौर पर ओवैसी को बड़ा नेता करार दिया है। भाजपा को पता है कि मुस्लिम वोट उसे नहीं मिलने वाला। लिहाजा, वह ओवैसी के बरक्स अखिलेश छोटा नेता प्रचारित कर मुस्लिम वोट में बिखराव चाहती है। अखिलेश ने बाबाजी की इसी चाल की काट के लिए जिन्ना को चुनावी बहस में लाकर खड़ा के दिया है और उसका नतीजा है कि जिन्ना के बहाने ही सही अखिलेश अब भाजपा के निशाने पर हैं और ओवैसी नेपथ्य में चले गये हैं।
अखिलेश ने 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती पर हरदोई की एक जनसभा में कहा था,”सरदार वल्लभ भाई पटेल, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और (मोहम्मद अली) जिन्ना ने एक ही संस्थान से पढ़ाई की और वे बैरिस्टर बने एवं उन्होंने आजादी दिलाई। वे भारत की आजादी के लिए किसी भी संघर्ष से पीछे नहीं हटे।.” इस पर बीजेपी ने जिन्ना की तुलना सरदार पटेल से किये जाने पर एतराज जताया लेकिन भाजपा के हमलों को नजरअंदाज करते हुए अखिलेश ने हफ्ते भर के अंदर विरोधियों को किताब पढ़ने की नसीहत दे डाली और कहा कि वे पने बयान पर कायम हैं। आखिर हाय-तौबा मचने के बाद भी अखिलेश राजनीतिक रूप से इस संवेदनशील मुद्दे पर डटे क्यों हैं, उसका जवाब यह है कि सत्तारूढ़ बीजेपी जहां हिन्दू वोटरों का ध्रुवीकरण कर सत्ता में वापसी की कोशिशों में जुटी है तो राज्य की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी अपने परंपरागत वोट बैंक एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण को सहेजने में जुटी है। संभवत: यही वजह है कि अखिलेश यादव ने सपा का गढ़ रहे हरदोई की एक सभा में मोहम्मद अली जिन्ना का नाम लेकर जो सियासी तीर छोड़े, वह भाजपा को जा चुभी और राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत भाजपा के सभी बड़े नेता उनपर ताबड़तोड़ हमले करने लगे। खुद योगी ने उनके बयान को तालिबानी मानसिकता वाला और विभाजनकारी बताया तो उनके एक मंत्री ने जिन्ना को अखिलेश का आदर्श बता डाला। राज्य के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने तो उन्हें ‘अखिलेश अली जिन्ना’ करार दे डाला।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इससे आगे बढ़कर राज्य की कई छोटी-छोटी पार्टियों से भी गठजोड़ कर रहे हैं, ताकि उनके माय समीकरण के वोट बैंक में इजाफा हो सके और वेफिर से सत्ता के शीर्ष पर वापसी कर सकें। अखिलेश की नजर इस बार गैर यादव ओबीसी- राजभर (4 फीसदी), निषाद (4 फीसदी) और मौर्य/कुशवाहा (6 फीसदी) वोटों पर भी है। इसी वजह से वह इन जातियों पर पकड़ रखने वाले दलों व नेताओं से गठजोड़ कर रहे हैं। मुस्लिम और यादव वोट में बिखराव न हो, इसके लिए अखिलेश पहले ही कह चुके हैं कि वो चाचा शिवपाल के साथ हर गले-शिकवे भुलाने को तैयार हैं। जिन्ना का ‘जिन्न’ फिर से निकलने के बाद मुस्लिम वोटर उनके पक्ष में लामबंद न हो जाये, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिन्दूवादी एजेंडे को बढ़ाते हुए अखिलेश के दांव को कुंद करने की कोशिशों में जुटे हैं।
(लेखक देश के जाने माने पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)