अजय भट्टाचार्य
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सातवें चरण में 54 विधानसभा क्षेत्रों के लिए 7 मार्च को मतदान होना है। इनमें पूर्वांचल के कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां आज तक भारतीय जनता पार्टी का खाता तक नहीं खुला है। इस बार भाजपा की पूरी ताकत विपक्ष के इस गढ़ को भेदने में लगी है तो विपक्ष भी इन सभी सीटों पर भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए कमर कसकर भिड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में आज ममता बनर्जी और अखिलेश यादव का रोड शो है तो प्रधानसेवक अपने भारी भरकम ताम-झाम के साथ कल रोड शो करेंगे।
10 विधान सभा क्षेत्रों को समेटे आजमगढ़ जिले की एक सीट आजमगढ़ सदर है, जहां से आज तक जनता ने भाजपा का विधायक नहीं चुना है। इसके अलावा गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, अतरौलिया, निजामाबाद और दीदारगंज में आज तक कमल नहीं खिला है। इसके अलावा मऊ सदर की सीट भी भाजपा के खाते में नहीं गई है। छठवें चरण की बात करें तो जहां चुनाव संपन्न हो गया है, गोरखपुर की चिल्लूपार सीट पर भी हमेशा भाजपा हारती रही है। पिछले तीन चुनाव में बसपा यहां से जीतती रही है। इस बार हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर बसपा छोड़कर सपा में शामिल हो चुके हैं। भाजपा ने राजेश त्रिपाठी को टिकट देकर मैदान में भेजा था। अब राजेश त्रिपाठी यहां कमल खिला पाएंगे या फिर हरिशंकर तिवारी का जलवा बरक़रार रहेगा यह देखने की बात होगी। देवरिया की भाटपाररानी सीट भी एक ऐसी सीट है जहां भाजपा को अब तक कामयाबी नहीं मिली है। अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस चार बार, तीन बार सपा जीत चुकी हैं। इस सीट से मौजूदा विधायक समाजवादी पार्टी से है। जौनपुर की मछलीशहर विधानसभा सीट पर भी आज तक कमल नहीं खिला है। पांच बार कांग्रेस, तीन बार जनता दल, दो बार सपा व बसपा जीत चुके हैं।
इस बीच पांचवें चरण में मतदान के बाद संभावित फेरबदल को लेकर सत्तारुढ़ भाजपा में सबसे ज्यादा मंथन चल रहा है। उत्तर प्रदेश में रविवार को विधानसभा चुनाव के पांचवें चरण कर मतदान में रात 8 बजे तक करीब 57.22 फीसदी हुआ था। जो 2017 में इन्हीं 61 सीटों पर हुए 58.24 फीसदी मतदान से 1.2 फीसदी कम था। इससे पहले 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में इन 61 सीटों पर 55.12 फीसदी मतदाताओं में मतदान किया था। इस हिसाब से देखें तो 2012 की तुलना में 2017 में मतदान में 3 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई। पिछले दो चुनावों में इन 61 सीटों का विश्लेषण करने पर यह पता चलता है कि जब-जब मतदान का प्रतिशत बढ़ता है तब-तब सत्ता के विरुद्ध विपक्षी दलों को लाभ हुआ है। 2017 में 3 फीसदी मतदान बढ़ने पर तब विपक्ष में रही भाजपा को 43 सीटों का फायदा हुआ था।
अब कम इस दौर के पहले चार चरणों में हुए मतदान का विश्लेषण करें तो 10 फरवरी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 58 विधानसभा सीटों पर पहले चरण में 62.4 फीसदी मतदान हुआ था। 2017 में इन 58 सीटों पर औसतन 63.75 फीसदी मतदान हुआ था। मतलब इस बार करीब 1.2 फीसदी मतदान कम हुआ । 2012 में इन्हीं 58 सीटों पर 2 फीसदी ज्यादा 61.03 फीसदी मतदान हुआ था थी। दूसरे चरण की 55 सीटों पर 64.42 फीसदी मतदान हुआ जो 2017 की तुलना में 1.1 फीसदी कम है। 2017 में इन्हीं 55 सीटों पर 65.53 फीसदी मतदान हुआ था, यानी इस बार करीब 1.1% कम मतदान हुआ है। 2012 में इन 55 सीटों पर 65.17 फीसदी मत पड़े थे। 2012 की तुलना में 2017 में वोटिंग में करीब 0.36% का इजाफा हुआ था। 2012 में सपा को 29 और 2017 में भाजपा को यहां 33 सीटों का फायदा हुआ। इस बार इन 55 सीटों पर 1% वोटिंग घटी है।
तीसरे चरण में 59 विधानसभा सीटों के लिए 61 प्रतिशत मतदान हुआ जो 2017 में 59 सीटों पर हुए 62.21 फीसदी मतदान से करीब 1.21 फीसदी कम रहा। इससे पहले 2012 में इन 59 सीटों पर 59.79% वोटिंग हुई थी। 2012 की तुलना में 2017 में मतदान में करीब 2.42 फीसदी इजाफा हुआ था। 2012 में सपा को 37 और 2017 में भाजपा को यहां 41 सीटों का फायदा हुआ। इस बार इन 59 सीटों पर 0.7 फीसदी कम मतदान हुआ है। जहाँ तक चौथे चरण में 59 सीटों के लिए हुए मतदान का सवाल है तो इस बार करीब 61.65 फीसदी मतदान हुआ जो पिछले चुनाव में हुए मतदान से करोब एक फीसदी कम था। 2017 में इन 59 सीटों पर 62.55% मतदान हुआ था। यानी इस बार करीब 1% कम वोट गिरे। 2012 में इन 59 सीटों पर हुआ 57.52 फीसदी मतदान 2017 में 5 फीसदी बढ़ा तो भाजपा की झोली में 48 सीटें ज्यादा आईं। जबकि 2012 में 8 फीसदी मतदान बढ़ने पर सपा को 22 सीटों का फायदा हुआ था।
(लेखक देश के जाने माने पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)