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समाज सुधार कोशिशों के‌ लिए याद किया जाएगा राबे हसन नदवी को

रईस खान (क़ौमी फ़रमान, मुंबई)
मौलाना
राबे हसनी नदवी को उनकी बेबाकी के लिए जाना जाता था. धार्मिक मामलों को लेकर वो समाज के लोगों को अक्सर नसीहत देते रहते थे. उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा था कि मुसलमानों ने इस्लाम धर्म को नमाज तक ही सीमित कर दिया और सामाजिक मामलों की उपेक्षा की जा रही है.

उनकी लंबे समय से तबीयत खराब थी. उन्होंने डालीगंज स्थित लखनऊ के नदवा मदरसे में गुरुवार 13 अप्रैल 2023 को 94 साल की उम्र में आखिरी सांस ली.

मौलाना मोहम्मद राबे हसनी नदवी सुन्नी इस्लामिक विद्वान थे. दारुल उलूम नदवतुल उलमा के प्रमुख चांसलर, और अलामी रबीता अदब-ए-इस्लामी, रियाद (केएसएए) के कुलपति थे.

मौलाना राबे हसन नदवी सन् 1952 में लखनऊ के नदवतुल उलमा, 1955 में अपने अरबी विभाग के प्रमुख और 1970 में अरबी के संकाय के डीन के सहायक प्रोफेसर बने। उन्हें अरबी भाषा और साहित्य में योगदान के लिए भारतीय परिषद उत्तर प्रदेश और एक राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

वे 1993 में नदवी नदवतुल उलमा के कुलपति बने। सन 2000 में हज़रत मौलाना सैयद अबुल हसन अली नदवी की मृत्यु के बाद उन्हें नदवा के नाजिम (रेक्टर) के रूप में चुना गया था। जून 2002 में हैदराबाद में पूर्व राष्ट्रपति हजरत मौलाना काजी मुजाहिदुल इस्लाम कासमी की मृत्यु के बाद उन्हें सर्वसम्मति से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का अध्यक्ष चुना गया।वर्तमान में वह 23 जून, 2002 से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष थे।

अरबी साहित्य में भारतीय योगदान के लिए डॉक्टरेट के लिए मोहम्मद राबे हसनी नदवी पर एक अध्ययन असम विश्वविद्यालय में लिखा गया है। मौलाना मोहम्मद राबे हसनी नदवी को दुनिया के 500 सबसे प्रभावशाली मुसलमानों और भारत के 22 असरदार मुसलमानों चुना जा चुका है।

उन्होंने जापान, मोरक्को, मलेशिया, मिस्र, ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, उज्बेकिस्तान, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका और कई अन्य अरब, यूरोपीय और अफ्रीकी देशों की यात्रा की है। उन्होंने कई अप्रकाशित कार्यों के अलावा अरबी में 15 पुस्तकें और उर्दू में 12 पुस्तकें प्रकाशित की हैं। वह अपनी विद्वता के लिए प्रशंसित है। जिनमें,पैगंबर मुहम्मद का जीवन‌ और गुबार ए कारवां जैसी किताबें शामिल हैं।

मौलाना सैयद मोहम्मद राबे हसनी नदवी का जन्म 1 अक्टूबर, 1929 को तकिया कलां, रायबरेली में सैयद रशीद अहमद हसनी और उम्मातुल अज़ीज़ के परिवार में हुआ था।मोहतरमा उम्मातुल अज़ीज़ मौलाना सैयद अबुल अहसन अली नदवी उर्फ ​​अली मियां नदवी की बहन थीं।वह लेखक और सुधारक अबुल हसन अली नदवी के भांजे थे। नदवी ने रायबरेली में अपने परिवार मकतब से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की और उच्च अध्ययन के लिए दारुल-उलूम नदवातुल उलमा में शामिल हो गए और उन्होंने 1957 में स्नातक किया।

मौलाना राबे हसनी नदवी ने कहा था कि न‍िकाह में दहेज देने के बजाए जायदाद में उसका हक दिया जाए। उन्होंने कहा कि इस्लामी शरीयत को बदनाम किया जा रहा है। मुसलमानों को इस रीति-रिवाजों से बचना चाहिए सुन्नत और शरीयत के अनुसार शादी करें। निकाह में बेकार रस्म-ओ-रिवाज, दहेज की मांग, मांझा (हल्दी की रस्म), रतजगा से परहेज। बरात की रस्म को खत्म करने के लिए मस्जिदों में सादगी से निकाह। निकाह की दावत सिर्फ शहर के बाहर के मेहमानों और घर वालों के लिए। निकाह में शिरकत करेंगे, लेकिन निकाह के बाद खाने की दावत से बचेंगे। वलीमा की दावत सादगी के साथ करेंगे, गरीबों का ख्याल भी रखेंगे। शरीयत के मुताबिक निकाह व दावत-ए-वलीमा का समर्थन करेंगे। निकाह व वलीमा में आतिशबाजी, नाचगाना आदि नहीं होगा। नौजवान अपने निकाह को सादगी के साथ कम खर्च में करेंगे। निकाह के तय वक्त का सख्ती से पालन करेंगे। निकाह के बाद सुन्नत के मुताबिक बीवी से बेहतर सुलूक करेंगे।

मौलाना राबे हसनी नदवी ने कहा था कि इस्लाम धर्म जीवन के सभी क्षेत्रों में हमारा मार्गदर्शन करता है, इसलिए मुसलमानों को हर क्षेत्र में हलाल और हराम का ध्यान रखना चाहिए। मुसलमानों ने धर्म को नमाज तक सीमित कर दिया और सामाजिक मामलों की उपेक्षा करनी शुरू कर दी है।

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