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क्या प्रचार के सहारे फडणवीस से बड़े हो जायेंगे शिंदे?

विजय यादव
आज
चर्चा करेंगे महाराष्ट्र की बदलती सियासत पर।
आपने एक कहावत जरूर सुनी होगी, लेकिन उसे चरित्रार्थ होते शायद नही देखा हो। यह कहावत है मेरी बिल्ली मुझसे ही म्याऊं। इस कहावत की, एक बानगी पिछले दिनों महाराष्ट्र की सियासत में देखने को मिली। मुद्दा था एक दूसरे से बड़ा होने का। अपने सामने छोटा साबित करने के लिए उसे चुना गया, जिसकी बदौलत आज वे सिंहासन पर विराजमान हैं।
इस विषय पर मैं कुछ आगे चर्चा करूं इसके पहले आपको एक छोटी सी कहानी सुनाता हूं। गर्मी की झुलसाने वाली धूप में एक बैलगाड़ी चली जा रही थी, बैलगाड़ी के नीचे उसी की छांव में एक छोटा सा प्राणी भी चल रहा था, थोड़ा आगे चलने के बाद अचानक उस प्राणी को ऐसा लगा कि, बैलगाड़ी मेरी वजह से चल रही है और वह बैलगाड़ी को रोकने और उसे अपनी ताकत का अहसान कराने के लिए वहीं पर ठहर गया और बैलगाड़ी आगे बढ़ती चली गई।
थोड़ी देर बाद जब वह तेज धूप में झुलसने लगा, तब उसे समझ में आया कि, मेरी वजह से बैलगाड़ी नही चल रही थी, बल्कि मैं बैलगाड़ी की छांव में चल रहा था।
अब हम चर्चा आगे करते हैं।
महाराष्ट्र की सियासत में भी हाल के दिनों में कुछ ऐसा ही दुहराने का प्रयास किया गया। प्रचार माध्यमों के जरिए यह बताने और साबित करने की कोशिश की गई कि, मेरा कद उनसे बड़ा है। इसके लिए एक निजी चैनल के सर्वे रिपोर्ट का सहारा लिया गया। यह बात जैसे ही प्रसार माध्यमों के जरिए लोगों के बीच पहुंची, जाहिर सी बात है कि, हंगामा मचना था। बात महाराष्ट्र से निकलकर दिल्ली सियासत तक जा पहुंची। खूब हो हल्ला हुआ और दूसरे दिन खुद को बड़ा साबित करने वाले बलून की हवा निकल गई या यूं कहें कि निकाल दी गई।
स्थिति को सुधारने के उद्देश्य से एक नया पर्चा बनाया गया, जो दूसरे दिन फिर अखबारों के उसी पन्ने पर चस्पा था, जहां एक दिन पहले वह उनसे ज्यादा लोकप्रिय बने थे, जिसकी वजह से वह आज सबकुछ हैं।
अब खूब अच्छी तरह से समझ गए होंगे कि, मैं बात किसकी कर रहा हूं। जी… हां मैं बात कर रहा हूं, महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस की। जिस देवेंद्र फडणवीस को कम लोकप्रिय अथवा छोटा साबित करने का प्रयास किया गया, आज उन्ही की वजह से महाराष्ट्र की सत्ता पर एकनाथ शिंदे विराजमान हैं।
जो महाराष्ट्र की राजनीति में एक मजबूत और दमदार पकड़ रखता हो, जो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहा हो, जो राज्य के एक ऐसे परिवार के सामने चुनौती बनकर खड़ा हो, जिसके संस्थापक बाला साहेब ठाकरे को आज भी देव तुल्य सम्मान दिया जाता हो, ऐसे देवेंद्र फडणवीस को क्या एक कथित सर्वे रिपोर्ट और विज्ञापन के जरिए राजनीति में बौना साबित किया जाना संभव है? यह सवाल सिर्फ मेरे अकेले का नही है, बल्कि महाराष्ट्र की हर उस आवाम का है, जो देवेंद्र फडणवीस पर अपना दृढ़ विश्वास रखता है।
राजनीतिक समझ ही नही बल्कि शिक्षा से लेकर सत्ता की पकड़ तक के किसी मामले में एकनाथ शिंदे वर्तमान काल में तो देवेंद्र फडणवीस बराबरी नहीं कर सकते। जिन लोगों को लगता है कि, डिप्टी सीएम बनने के पीछे देवेंद्र फडणवीस की कोई मजबूरी रही होगी, तो यह भ्रम मन से निकाल देना चाहिए। फडणवीस ने राजनीति में शिष्टाचार और कर्तब्यनिष्ठा को अपने उस पिता से सीखा है, जिसे संघ के भीतर सदाचार, कर्तब्यपरायण और एक निष्ठावान सहनशील व्यक्तित्व के लिए पहचाना जाता है।
देवेंद्र फडणवीस के पिता गंगाधर राव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ में रहे। फड़नवीस के पिता राज्य विधान परिषद के सदस्य भी रहे। फडणवीस नागपुर से स्कूली शिक्षा पूरी की। उन्होंने पांच साल की एकीकृत कानून की डिग्री के लिए नागपुर के सरकारी लॉ कॉलेज में दाखिला लिया, और 1992 में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बिजनेस मैनेजमेंट में स्नातकोत्तर डिग्री और डीएसई, बर्लिन से परियोजना प्रबंधन में डिप्लोमा लिया।
देवेंद्र फडणवीस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के साथ अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया और 1990 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) में शामिल हो गए। उन्होंने नागपुर के राम नगर वार्ड से अपना पहला नगरपालिका चुनाव जीता और 1992 में 22 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के पार्षद चुने गए। वर्ष 1997 में, वे नागपुर नगर निगम के पहले सबसे कम उम्र के मेयर बने। साल 1999 से 2004 तक उन्होंने लगातार तीन बार महाराष्ट्र विधान सभा के सदस्य के रूप में कार्य किया।
फडणवीस को 2001 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने 2010 में भाजपा की महाराष्ट्र इकाई के महासचिव के रूप में कार्य किया और 2013 में राज्य इकाई के अध्यक्ष बने।
इतने सारे महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रहने वाले देवेंद्र फडणवीस की योग्यता पर उंगली उठाने वालों को 1 दिसंबर 2019 को विधानसभा में बोले उनके उस डायलॉग को याद कर लेना चाहिए, जब उन्होंने कहा था, मेरा पानी उतरता देख, मेरे किनारे पर घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं, लौटकर वापस आऊंगा’।

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