Article

रोजा भूखे प्यासे रहने का नाम नहीं

आँख का रोज़ा

आँख का रोज़ा इस तरह रखना चाहिये की आँख जब भी उठे तो सिर्फ और सिर्फ जरूरी कामों ही की तरफ उठे। आँख से मस्जिद देखिये, क़ुरआन देखिये, मज़ाराते औलिया की ज़ियारत कीजिये। अल गरज़ कोई भी नाजाइज़ व हराम चीज़ देखने से बचे। और आँख का रोज़ तो 24 घंटे दिन रात और बारह महीने होना चाहिए।

कान का रोज़ा

कान का रोज़ा ये है कि सिर्फ और सिर्फ जाइज़ बाते सुनें। मसलन कानों से तिलावत व नात सुनिये, सुन्नतों भरे बयानात सुनिये।

ज़बान का रोज़ा

ज़बान का रोज़ा ये है कि ज़बान सिर्फ और सिर्फ नेक व जाइज़ बातों के लिये ही हरकत में आए। मसलन ज़बान से तिलावते क़ुरआन कीजिये, ज़िक्रो दुरूद का विर्द कीजिये। दर्स दीजिये सुन्नतों भरा बयान कीजिये, नेकी की दावत दीजिये। फ़ुज़ूल बकबक से बचते रहिये।

हाथ का रोज़ा

हाथो का रोज़ा ये है कि जब भी उठे सिर्फ नेक काम के लिये उठे। मसलन क़ुरआन को हाथ लगाइये, नेक लोगों से मुसाफह कीजिये, हो सके तो किसी यतीम के सर पर शफ़क़त से हाथ फेरिये कि हाथ के नीचे जितने बाल आएगे हर बाल के इवज़ एक नेकी मिलेगी।

पाँव का रोज़ा

पाँव का रोज़ा ये है कि पाँव उठे तो सिर्फ नेक कामो के लिये उठे। मसलन पाँव चले तो मसाजिद की तरफ, मज़ारते औलिया की तरफ, सुन्नतों भरे इज्तेमअ की तरफ, नेकी की दावत के लिये, किसी की मदद के लिये चले।

वाक़ई हक़ीक़ी मानो में रोज़े की बरकत तो उसी वक़्त नसीब होगी जब हम तमाम आज़ा ( अंगों) का भी रोज़ा रखेंगे। वरना भूख और प्यास के सिवा कुछ भी हासिल न होगा।

सोने के बाद सहरी की इजाज़त न थी

रात को उठ कर सहरी करने की इजाज़त नही थी. रोज़ा रखने वाले को गुरुबे आफ़ताब के बाद सिर्फ उस वक़्त तक खाने पीने की इजाज़त थी जब तक वो सो न जाए. अगर सो गया तो अब बेदार हो कर खाना पीना मना था। मगर अल्लाह ने अपने प्यारे बन्दों पर एहसान अज़ीम फ़रमाते हुए सहरी की इजाज़त दी और इस का सबब यूँ हुवा….

सहरी की इजाज़त की हिकायत

हज़रते सरमा बिन क़ैस मेहनती शख्स थे। एक दिन ब हालते रोज़ा अपनी ज़मीन में दिन भर काम कर के शाम को घर आए। अपनी ज़ौजा से खाना तलब किया, वो पकाने में मसरूफ़ हुई। आप थके हुए थे, आँख लग गई। खाना तैयार कर के जब आप को जगाया गया तो आप ने खाने से इनकार कर दिया। क्यूँ की उन दिनों (गुरुबे आफ़ताब के बाद) सो जाने वाले के लिये खाना पीना मना हो जाता था। चुनान्चे खाए पिए बगैर आप ने दूसरे दिन भी रोज़ा रख लिया। आप कमज़ोरी के सबब बेहोश हो गए।

तो इन के हक़ में ये आयते मुक़द्दसा नाज़िल हुई : और खाओ और पियो यहाँ तक कि तुम्हारे लिये ज़ाहिर हो जाए सफेदी का डोरा सियाही के डोरे से पौ फट कर। फिर रात आने तक रोज़े पूरे करो।
(पारा, 2 अल बक़रह, 187)

इससे ये मालूम हुवा कि रोज़े का अज़ान फज्र से कोई तअल्लुक़ नही यानी फज्र की अज़ान के दौरान खाने पीने का कोई संबंध ही नही। अज़ान हो या न हो आप तक आवाज़ पंहुचे या न पंहुचे सुब्हे सादिक़ होते ही आप को खाना पीना बिल्कुल ही बन्द करना होगा।
प्रस्तुति: रईस खान (संपादक– कौमी फरमान)

Related posts

“जाति धर्म की राजनीति के चलते यूपी में हो रहे एनकाउंटर”

newsstand18@

Conwy becomes host county for Wales Rally GB

newsstand18@

Best Funny Wins & Fails Compilation February 2015

newsstand18@